Saturday, October 10, 2009

गोनू झाक चमरछोंच


गोनू झा बड़ गूढ़ लोक छलाह | हुनका चीन्हब बड़ दुरूह काज छल | जिनगी पर्यन्त आ सभकेँ छकबिते रहलाह तेँ सम्पूर्णतामे ओ एक धूर्त पंडीजी रहथि से सभ मानैत रहनि आ ताही कारणे सभ हुनकासं साकाक्ष रहैत छल | के जानय, कखन कोन व्याजें कतs छका बैसताह |

एक बेरक गप्प छैक | चैत - बैशाखक मॉस रहैक | सबेरे - सकाळ निन्न टुटि जानि | निन्न टुटै़त देरी हुनका कथुक होश नहि रहनि - निछोहे दौड़थि पोखरि दिस | गोनू बाबू अपन एही आदतिसं तंग रहितो तंग नहि रहैत छलाह | आखिर दैनिक नित्य क्रियाक ई एक आवश्यक अंग थिक से बुझी निश्चित छलाह | एहि लेल ओतेक चिन्ता फिकिर नहि छलनि |

से ओहि दिन गोनू झाकेँ अहलभोरेमे निन्न टुटि गेलनि | ओ चट उठलाह आ अपन आदतिक अनुसार खाटक तरमे हथोरिया देलनि | लोटा निपत्ता छलनि | पत्नी पर क्रोध भेलनि जे लोटा रखनाइ कियक बिसरि गेलीह मुदा तात्कालिक स्थिति क्रोध अनबा योग्य नहि रहनि | निछोहे पड़यलाह पोखरिक भीड़ दिस |

किछु कालक पश्चात होस भेलनि तs छोंच करबाक चिन्ता धयलकनि | मुदा तुंरत मोन प्रफुल्लित भs उठलनि | आगुक पोखरिमे जल हुनक प्रतीक्षा कs रहल छल |


ओना बरहमसिया कब्जियत रहने स्वाभाविकतासं बेसी समय गोनू बाबूकेँ अपन एहि क्रियामे लागितहि छलनि, मुदा आइ बहुत कम्मे समयमे निवृत भs जयबाक तत्काल किछु अर्थ नहि लगलनि |

कने काल एहि त्वंचाहचमे समय बीति गेलनि मुदा एहि कार्य मे आर बेसी समय नष्ट करब उचित नहि बुझलनि |

जखन गोनू झा छोंच करबाक लेल पोखरिक जलमे हाथ देलनि कि नजरि गेलनि अपन चमार पसारी पर जे हिनक ठीक विपरीत वला भीड़ पर नदी फीड़ी छोंच कs रहल छल | गोनू झा एहि पर ध्यान नहि देलनि | छोंच करय लगलाह |

गोनू झा छोंच करैत जाथि आ तरे आँखिये चमराकेँ देखितो जाथि | ओ निर्विकार भावे छोंच कयने जा रहल छल |

गोनू झाकेँ जिद लागि गेलनि हमरा जकाँ ई कि छोंच करत | जांच कs लिअ अपन एहि लूरिक |

ओहि कात चमार भाइ सेहो सोचय जे गोनू की जे हमरेटा छोंच करय अबैय ओहो निर्विकार भावे छोंच करैत रहल |

पल बितल, पहर बितल मुदा दुनू, दुनू दिससं उठबाक नामे नहि लेथि | आब दुनू गोटेक मोनसं जिदक स्थान गौण भsगेल रहनि | गोनू बाबू सोचथि जे हम पहिने उठि जाइत छी तs ई चमरा हल्ला कs देत जे गोनू बाबू हारि गेलाह ओमहर चमरा भाइ के सोचयि जे हम पहिने उठि जाइत छी तs गोनू हल्ला करैत फिरताह जे आइ फलमाकेँ खूब छकाओल |

भोरसं दुपहर भेल | दुपहरसं साँझ भेल | मुदा दुनू छोंच करैत जाथि आ एक दोसरकेँ तरे आँखिये देखितो जाथि | ओहि बाटे हल्ला करैत गामक लोक जाइत - अबैत एहि लीलाकेँ देखथि जे आखिर की बात भs रहल छैक |

तखनहि गोनू झाक एक अपेक्षित ओहि बाटे जाइत छलाह | ओ जखन भोरमे गामसं जजमनिका लेल विदा भेल रहथि तs गोनूकेँ छोंच करैत देखने रहथिन | मुदा एखन साँझमे जखन घुरि रहल रहथि तs हुनका ओहि स्थितिमे देखलथिन | ओतहिसं टोकरा देलथिन - की हओ गोनू, आइ भोरसं कोन साधना मे लागल छह |

गोनू छोंच करितै उत्तर देलथिन - चमरछोंचमे पड़ल छी | देखै नहि छहक ओहि पार चमराकेँ |

ओहि अपेक्षितक नजरि जखन ओहि पार गेलनि तs देखलथिन जे चमरा भाइ अपन छोंचों करैत जाय आ चिकरि - चिकरि घरबाली केँ सेहो सोर करय जे ' भोजन एतै लेने आ छोंचक फेरमे पड़ल छिकी | '

ओ अपेक्षित ओतs सं विदा भेलाह आ बाटे - घाट जे क्यो भेटथिन, सभकेँ एकेटा बात कहलनि जे गोनू चमरछोंचमे पड़ल छथि |

आ गोनू झा हारि अन्तमे प्राण त्याग कs देलनि |

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