Wednesday, October 21, 2009

गुरुक आशीर्वाद


गोनू झा नित्य पाठशाला तं जाइत छलाह मुदा पाठ कहियो याद नहि करैत छलाह | गुरु जी हुनका डाँट - दबाड़ करैत छलथिन मुदा ओ तकर कनिको फिकिर नहि करैत छलाह |

एक दिन गुरूजी सभ विद्यार्थीसँ पाठ सुनि रहल छलाह | सभ गोटे अपन - अपन पाठ सुना देलनि, मुदा गोनू झाक बेर अयलनि तं ओ कहलथिन - गुरूजी आइ नै काल्हि सूना देब |

गुरूजी बजलाह - " अच्छा, जँ काल्हि नहि सुनयबी तs पीठक खाल खीचि लेबह | "

छुट्टी भेल | सभ विद्यार्थी अपन - अपन घर चलि पड़लाह |

दोसर दिन सभ विद्यार्थी पाठशाला पहुँचला | गोनू झा सभसँ आगू अपन जगह पर डटल छलाह |

कनेक कालक बाद गुरूजी कक्षामे अयलाह | ओ गोनू झासँ - " की गोनू, पाठ याद कयलौं ने ? "

- " हँ गुरूजी | '

- " तs सुनाउ! "

- " आइ नै, काल्हि गुरूजी! "

- " से कियक? "

- " अहाँ आइ नै, काल्हि सुनयबाक लेल कहने रही! "

गोनू झाक बुधियारी गुरूजी बुझि गेलाह, ओ कहलनि - " गोनू, हम अहाँकेँ चीन्हि गेलौं अछि | हम अहाँक खाल घीचि लेब !

- " गुरूजी ! हम वर्ख दिनसँ पाठशाला आबि रहल छी | हम गोनू छी | आ से अपने अखन धरि चिन्हने नै रही? "

- " हम आहाँ केँ नीक जकाँ चीन्हि गेल छी | अहाँ एक नम्बरक फनटूस लड़का छी | हम आइ फेर कहि दैत छी जे काल्हि अर्थात वृहस्पतिकेँ सम्पूर्ण पोथी समाप्त कs नै अनलौं, तs बुझि लिअs जे अहाँक कुशल नहि अछि |


- ' जे आज्ञा गुरूजी | " गोनू नहुएसँ बजलाह |

वृहस्पतिकेँ गोनूझा समय पर पाठशाला पहुँचलाह | अबितहि ओ गुरूजीसँ कहलनि - " गुरूजी, हम पोथीकेँ समाप्त कs देल अछि | "

- " लाउ पोथी ! एखने हम पुछै छी | "

- " हम तs ओकरा काल्हि सांझहिमे समाप्त कs देलहु, आब कतs सँ दिअ?

- " हम कहै छी, पोथी लाउ ! "

- " अहाँ नै बुझलियै गुरूजी, हम अहाँक आज्ञानुसार काल्हि जाइते पोथीकेँ फाड़ी समाप्त कs देल | "

- " रे गोनुआ! हम कहि दै छिऔ, काल्हि नव पोथी कीनि कs पाठ नै सुनयलें तs तोहर प्राण लs लेबौ | "

- " अबस्स लs लेब गुरूजी! मुदा ई तs बुझा दिअ जे प्राणक की रूप अछि? "

- " प्राणक कोनो रूप नहि होइछ गोनू | ई प्रत्येक शरीरमे हवाक रूपमे वर्तमान रहैत अछि!

- " तखन तs हम एखनो बुझा दैत छी | "

- " की? "

- " यैह जे नव पौथीक लेक माय हमरा पाइ नहि देतीह तेँ हमार शारीरसँ प्राण लs लिअ एखने प्राण दs रहल छी | " आ ई कहैत गोनू झा मुँहसँ हवा छोड़य लगलाह |

गुरूजीकेँ हँसी लागि गेलनि, ओ कहलथिन - " गोनू, तोरा विद्या नहि लिखल छह | परंच बुधयारीमे तोरा क्यो पछाड़ी नहि सकैत छथुन | ई आशीर्वाद छह | "

गोनू झा माथ झुका ई आशीर्वाद ग्रहण कयलनि |

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