Wednesday, October 07, 2009

गोनू झा भोज कयलनि


जखन गोनू झा बृद्ध पिताक देहावसान भs गेलनि तs गौंआँ लोकनिकें प्रसन्नता भेलनि जे एकटा दमगर भोज पारि लागत | सरझप्पीक बाद गौंआँ सभ गोनू झाक दलान पर जुमैत गेलाह आ हुनक पिताक महानताक बखान करैत वृषोरत्सर्ग श्राद्धक संग असिद्ध भोज करबाक सुझाब देबs लगलथिन | बेर बेर - असिद्ध भोजक आग्रह करैत देखि गोनू झा कहलथिन जे ओना तs हमरा टका - पैसाक अभाव अछि, मुदा हम प्रयास करब आ अहाँ लोकनिक इच्छाक पूर्ति करबाक चेष्टा करब |

मुदा गौंआँ सभ एके ठाम कहि देलथिन जे पाइ बिना ककरो श्राद्ध कतहु पड़ल रहलैक अछि | सर - समाज आखिर कोन दिन लेल रहैत छैक | अहाँ मात्र ' हँ ' कहि दियौक | सभ वस्तुक प्रबंध भs जैयतक |

गोनू झा देखलनि जे इ सभ नहि मानत | मधुरक भोज गछबाइये कs छोड़त आ ताहि लेल टाका पैसाक प्रबंध सेहो कs देत | मुदा जखन मधुरक भोज करहिये पड़त तं कर्ज कियक लेब |

गोनू झा बजलाह - ' ठीक छैक | अपने सभक इच्छाक पूर्ति होयत | हम टाका पैसाक जोगार स्वयं कs लेब आ अहाँ सभक मूँह मिट्ठो करा देब | "

सभ तृप्त होइत अपन - अपन घर जाइत गेलाह | क्रमशः श्राद्धक समय लगचियाल गेल आ गौंआँ सभ अपन - अपन पेट सोन्हाबs लगैत गेलाह |

श्राद्धक दिन जखन नोंत देब आरम्भ भेल तs लोकक प्रसन्नताक मन अपना - अपना ढंगे खयबा आ लयबाक योजना बनबय लागल |

संध्या काल जखन बिझहो भेल तs केओ छिपली - लोटा, तs केओ पितरिया बरगुन्ना, तs केओ कसकुटक बट्टा लs कs गोनू झाक घर दिस विदा होइत गेलाह किछु खन्हन किछु मोटरी बन्हनक मन्सूबा पोसने सभ हुनक दलान पर गज - गज करय लागल |


चटपट बीड़ी बैसाओल गेल | करमान लागल लोक अपन उचित स्थान ताकि - ताकि बैसैत गेलाह | पुरैनिक पात परसनाइ आरम्भ भेल | जिनका जेना इच्छा भेलनि, पात लs कs ओकरा सजोलनि तथा जल - सिक्त करैत गेलाह | कने कालक लेल शांति पसरल रहल | फेर दू तीन बलिषट बारिक छिट्टा कन्हापर रखने आँगन सं बहरायल | छिट्टा देखैत देरी, सभक जीहसं पानी उधिआय लगलनि मुदा............

मुदा पात पर मधुरक बदलामे जखन कुसियारक छोट - छोट टोनी सभ खसय लागल तs निमन्त्रित ब्राह्मन हहा - हहाकs निचा खसय लगलाह - ई गोनूआँ सभकेँ बुरि बनाकs चली गेलौं |

तखने गोनू झा अपन बटलोही सन पेट पर हाथ फेरैत आँगनसं बहरयालह - " हँ, तs आब नैवेध देल जाय " | पुनः कsल जोडत आगू बजलाह - ' आइ स्वर्ग में हमर पिता कतेक प्रसन्न होइ़त हेताह, जे एतेक रास ब्रह्मण देवता हुनका नाम पर बैसल भोजन कs रहल छथि | '

गामक मुखियाकें नहि रहल भेलनि, बजलाह - " की हओ गोनू, एकोरत्ती तोरा लाज नहि होइछs जे दलान पर बैसा हमरा सभकेँ बुरि बना रहल छs |

गोनू गम्भीर मुद्रामे प्रत्युत्तर कयलथिन - " हम के होइत छी अपने सभकेँ बुरि बनौ़निहार | अहाँ लोकनि तs जनै छी जे सब मिठाइयेक जड़ी होइत अछि कुसियार | तें तरह - तरह मिठाइक फेरीसं हम बुझल जे किएकने तकर मुले अपन लोकनिक समक्ष राखल जाय | होइयौ, आब अधिक विलम्ब नहि करियौ |

ब्रह्मण देवता लोकनि कें जखन अपन गलतीक भान भेलनि तs बकार नहि फुटलनि | अन्ततोगत्वा टोनिकें चिबबैत मोनहि - मों गोनूक श्राद्धक संग संग अपन - अपन पेटोक श्राद्ध करs लगलाह |

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