Friday, October 09, 2009

गोनू झाक पुरस्कार


मिथिला - दरबार प्रवेश द्वार पर नियुक्त एकटा द्वारपाल अत्यधिक लोभी आ घुसखोर छल | प्रायः दोसरे - तेसरे गोनू झाकेँ किछु - ने - किछु पुरस्कार भेटैत छलनि आ से देखि ओही द्वारपालकेँ करेज फाटय लगैक | ओ सदिखन मनमे यैह योजना बनाबय जे कोनहुना गोनू झा केँ फेरमे देल जाय, जाहिसँ प्राप्त पुरस्कारक किछु अंश ओकरो भेटि जाइक |

गोनू झा मनहि - मन द्वारपालक आशय बुझैत छलाह | एक दिन मगधसं एकटा पंडित शास्त्रार्थ करबाक उद्धेश्यसं दरबारमे अयलाह | मिथिला नरेश घोषित कयलनि जे हमरा दरबारक जे क्यो पंडित एहि मगध पंडितकेँ शास्त्रार्थमे पराजित करताह हुनका मुँहमाँगल पुरस्कार भेटतनि |

दोसरे दिन शास्त्रार्थक समयक निर्णय भs गेल |

शास्त्रार्थक दिन सभ पंडित नियत समय पर आबिकs बैसि गेलाह | मुदा गोनू झाकेँ ओहि दिन दरबारमे आबs मे बिलम्ब भ' गेलनि | पैघ - पैघ डेग बढओने जखन गोनू झा प्रवेश द्वारपार पहुँचलाह तs देखैत छथि जे प्रवेश द्वार बन्द अछि ओ ओतs निशिचन्त भावे द्वारपाल बैसल अछि |

गोनू झा हफसैत द्वारपालसं निहोरा कयलथिन जे आइ हमरा आबs मे बड़ विलम्ब भs गेल | जल्दी प्रवेश द्वार खोलि दैह |

द्वारपाल निशिचन्ततापुर्चक हुनका दिस तकैत बाजल - ' शास्त्रार्थ प्रारम्भ भेला बहुत काल भs गेलैक | एखन अपनेकेँ गेलासं शास्त्रार्थमे बाधा हेतै |

महाराज हमरा पर कुपित हेता | हमरा माफी देल जाय | हम द्वार खोलबासं सर्वथा असमर्थ छी | '

गोनू झाकेँ भाँगठ नहि रहि गेलनि जे द्वारपाल की चाहैत अछि | ओ मनहि - मन किछु सोचि़कs द्वारपालक खुशामद करैत बजलाह - ' आइ दरबारसं जे किछु पुरस्कार भेटत ओ सभटा अहीं केँ दs देब | आबो तs द्वार खोलि दिअ | "

आन्हर चाहय दुनु आँखि | द्वारपाल तुरत द्वार खौलैत बाजल - ' आन क्यो रहितैक तs हम किन्नहु द्वार नहि खोलितहूँ मुदा अहाँक - गप्प तs भिन्न अछि | हे, तs मोन राखब | "

शास्त्रार्थमे गोनू झा ओहि मगध पंडितकेँ पानि पियाकs छोड़ी देलथिन | मिथिला नरेश प्रसन्न भs कोषपालकेँ आदेश देलथिन जे गोनू झाकेँ एक सहस्त्र स्वर्ण - मुद्रा पुरस्कार स्वरुप देल जाय |

एहि पर गोनू झा उदास होयबाक नाटक करैत कहलथिन - " महाराज, काल्हि अपने घोषित कयने रहिऐक जे मगध - पंडितकेँ पराजित कइनिहारक मुँह माँगल पुरस्कार भेटतैक मुदा आइ दोसरे गप्प सुनि रहल छी | "

मिथिला नरेश मुस्की दैत उत्तर देलथिन ' बेस, बुझि गेलौं | कोषपाल, हिनका दू सहस्त्र स्वर्ण - मुद्रा देल जाय | '

गोनू झा अविचलित होइत बजलाह - " सरकार, हमरा मुँहमाँगल पुरस्कार भेटबाक चाही | "

मिथिला नरेश - " बेस | मांगू अहाँ की माँगैत छी? | "

गोनू झा बजलाह - ' महाराज, जाँ अपने हमरा पर प्रसन्न छी तs आजुक पुरस्कार मे हमरा बीस सोंटाक पीटाइ चाही | "


गोनू झाक विचित्र मांग सुनिकs सभ व्यक्ति विस्मित भs गेल | नरेशक बारम्बार आग्रह कयलोक उपरांत जखन गोनू झा अपन मांग पर डटल रहलाह तs हारि कs नरेश दण्डधारीकेँ बजओलनि आ ओकरा आदेश देलथिन जे गोनू झाकेँ बीस सोंटा मारल जाय |

दण्डधारी जखन हाथ सोंटा लs गोनू झा दिस बढ़ल कि गोनू झा अपन हाथ उठबैत महाराजकैँ सम्बोधन कयलनि - " सरकार, हम द्वारपालक संग वचनबद्ध छी जे आजुक पुरस्कार हम ओकरे देबैक, आ तेँ ई पुरस्कार ओकरे देल जाय जं हमरा कथनमे किछु संशय लगैत होअत तं द्वारपालसं पुछिये लेल जाय | द्वारपालसं जखन तं पूछल ओ गोनू झाक गपकेँ सहर्ष स्वीकार कयलक |

फेर की छल | दण्डधारी गनि कs बीस सोंटा द्वारपालकेँ लगओलक |

ओहि दिनसं द्वारपालक नानी ने मरिहनु जे फेर गोनुसं अराड़ी मोल लेबाक साहस करथि |

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