Wednesday, September 30, 2009

गोनू झाक कविता


मिथिलाक रजा कवि़क बड़ आदर करैत छलाह | जे कोनो कवि राजाक दरबारमे जाइत छलाह तथा अपन कवितासं राजाकें प्रसन्न कs दैत छलाह , हुनका बेस आदर - सत्कार होइत छलनि तथा दान - दक्षिणा सेहो भेटैत छलनि |

एक समय गप्प थिक | कोनो गाममे दूटा गरीब ब्राह्मण रहैत छलाह | तें हुनका हरदम अन्न - वस्त्रक कष्ट बनले रहैत छलनि | एक दिन दुनु सोचलनि जे कियक ने दरबारमे जाकs भाग्यकें तौली | अपन परम मित्र गोनू सेहो ओतहि दरबारी छथि |

ई सोचि ओ दुनु दरबार दिस प्रस्थान कs देलनि | मुदा बाटमे चिन्ता होमs लगलनि जे जँ राजाकें अपन परिचय एकटा कविता रूपमे देबनि तs ओ निशच्ये कविता सुनयबाक आग्रह करताह | मुदा हमरा सभकें तs कवितासं दुरीक सम्बन्ध नहि अछि आखिर करी तs करी की ?

मुदा चलैत रहलाह | चलैत रहलाह | चलैत - चलैत भूखे पेटमे बिलाड़ी कूदs लगलनि मुदा!!! कि तखने एकटा जामुनक पाकल - फड़ल गाछ पर नजरि पड़लनि | दुनु ब्राह्मण लपकलाह ओहि दिस |

भरि इच्छा जामुन खयलनि | मोन प्रसन्न भs गेलनि | मुदा एकटा बातक आशचर्य भेलनि | पहिल ब्राह्मणकें जे एतेक हमरा दुनु गोटे जामुन खयलहूँ मुदा एकर तs कोनो अन्ते नहि बुझाइए | ओहिना गाछ लुबधले अछि, नीचामे पथार लागले अछि!

दोसर ब्राह्मण पीठ पर हाथ दैत पहिल ब्राह्मणकें चलबाक आग्रह करैत कहलथिन जे चलू, जामुन अन्त न पाइयो |

पहिल ब्राह्मण प्रसन्न भs गेलाह | हुनका कविता भेटि गेलनि |

एहिना आगू बढ़लाह तs देखलनि दू गोटेकें झगड़ा करैत | एक गोटे दोसरकें पिटी - पाटि विदा भs गेल | पहिल ब्राह्मण हुनका लग जाकs सान्त्वना दैत कहलथिन क्यों तासो ठानो राड़ी |

दोसर ब्राह्मन कूदी उठलाह - बस कविता भेटि गेल | आ कहैत एकटा गुल्लरिक गाछ जडिमे आबि ओंगठिकs पड़ी रहलाह |

एम्हर मुदा पहिल ब्राह्मण नजरि जंगलसं पात खरढीकs आनि रहलि किछु स्त्रीगण पर पड़लनि आ तकरे देखैत अपन मित्र लग बड़बड़यलाह - लायो पत्ता नारि | कि तखने एकटा गुल्लरि धब्ब दs खसलैक आ दुनु ब्राह्मन एके बेर चिकरि उठलाह - भs गेल कविता -

" जामुन अन्त न पाइयो, क्यों तासो ठानो राड़ी | "
" पकल गुल्लरि गयो, लायो पत्ता नारि | "

दुनुक प्रसन्नताक ओर - छोर नहि रहलनि | ओ सभ धरफराइत दरबार दिस विदा भs गेलाह |

दरबार लागल छल | उक्त् दुनु ब्राह्मन कविक अयबाक सुचना राजाकें देल गेलनि | ब्राह्मन देवता सादर भीतर आनल गेलाह |

फेर शुरू भs गेल कविताक धुरखेल | राजाक आदेश भेल | दुनु ब्राह्मन एके बेर उठलाह आ एके स्वरमे उक्त् कविता सुना गेलाह |

राजा सन्न | सभासद सन्न | ई की भेल कविता | चारुकातसं कविताक नाम पर नड़टे करबाक विरोध शुरू भs गेल | राजा सेहो बिगड़ी गेलाह |

मुदा ताहिसँ पहिने स्थितिकें गमैत दुनु ब्राह्मन बिगड़ी गेलाह - जं हम जनितहूँ जे एतs कविताक नहि, अपितु कविताक नाम पर नड़टेकें उचित सम्मान भेटैत छैक, तं किन्न्हूं नहि अबितहूँ | बड़ दुःखक संग एतs सं जाय पड़ी रहल अछि जे हमर ई छोट सं कविताक अर्थ एतs कयो बुझनिहार नहि | संगहि एहू बातक टोह लागि गेल जे हमर राजाक दरबारी विद्वान लोकनि कतबा पानिमे छथि | "


ब्राह्मन देवताक गप्पक संग कविता सेहो गोनू झाक कानमे पड़लनि | ओना ओ आइ किछु बिलम्बसं पहुँचल छलाह | मुदा जतबा जे सुनलनि ताहिसँ ई बुझबामे भांगठ नहि रहलनि जे जं क्यो एकर सभक कविताक अर्थ नहि कहलकैक तs नाहक में दुनुकें फाँसी भs जयतैक |

गोनू झा यैह सह सोचैत राजाक सोझा उपसिथत भेला | राजा गोनूसं उक्त् कविताक कने अर्थ बुझाबs कहलथिन |

गोनू कविता सुनि कने काल गुम्म रहलाह | फेर तरे आंखिये दुनु ब्राहमण कें देखलनि | आह! दुनु निरीह प्राणी | गोनू कें दया आबि गेलनि, बजलाह - " सरकार! ऐ कविता कें मामूली नै बुझियो | ऐ मे बड़ा गूढ़ अर्थ सभ घुसिआयल छैक | एकर अर्थ भेलै जे जिनकर मोनक अनत नहि पओलक, तिनका सं अहाँ कियक अरारि ठनलहूँ | अर्थात, हे रावण! अहाँ राम सं कियक अराड़ी ठनलहूँ? पर स्त्रीकें हरण कs अनबाक कारणहि लंका गुल्लरिक फड़ जकाँ खसि पड़ल | "

गोनू झाक एहि विकट अर्थ सं राजा प्रसन्न भs गेलाह तथा गोनू सहित दुनु ब्राह्मनकें यथेषट दान - दक्षिणा दs कs विदा कयलनि

जखन तीनू गोटे बहार अयलाह तs गोनू झा हुनका दुनुकें एक चास करैत कहलथिन- ' हओ बूड़ी ब्राह्मन, आई हम नहि अबितियह तs चलि ने जइतह बड़का घरक हबा खाय लेल | "

-"से तs गोनू बाबू.................. | " दुनु दाँत खिसोटैत बजलाह |

गोनू झा दुनु ब्राह्मन नाकक पुरामे ठुसैत कहलथिन - " जाह, फेर एहन नव कविता नहि बनविहह | " आ कहैत विदा भs गेलाह |

एम्हर दुनु ब्राह्मण छिकैत - छिकैत प्राण देवा पर बिरत्त भs गेल - गोनुआ ककरो नहि |

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